जीवन में मित्रता
जीवन में मित्रता
जीवन की इस डगर में उलझन और अटपटा है ।
प्रेम सद्भाव के अलावा,लड़ाई-झगड़ों का लफड़ा है। ईर्ष्या डाह क्यों करता है रे मानुष ।
बाद में अपनों से बिछड़ जाना है।
मत कर इतना भोगविलास लालसा ।
जीवन में मित्रता का प्रेम जगाना है ।
घमंड ना कर इस चोला पर ।
चूर-चूर चूर एक दिन हो जाएगा ।
चारदिन की जिंदगानी है ।
मिट्टी में मिल जाएगा ।
दीन दुखियों की सेवा कर लो।
कठिन से कठिन पाप धुल जाएगा ।
सतगुरु परमेश्वर के निकट आओ ।
तब जीवन की परम आनंद मिल पाएगा।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार (छ. ग.)
8120587822