जीवन पथ
जीवन पथ” (कविता)
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जीवन पथ पर भ्रमित हो मनुज उलझ गया जज़्बातों में
लक्ष्य साध मंज़िल तक बढ़ता कंटक पथ आघातों में,
कालचक्र सा घूम रहा है समय बीतता बातों में
भौतिकवादी जीवन जीता फिसल रहा हालातों में।
दुर्गम राह विवशता छलती धूप देह झुलसाती है
फूट गए कदमों के छाले आस नेह बरसाती है,
रिश्ते-नाते नोंच रहे हैं पाप भूख करवाती है
चाल चले शतरंजी शकुनी किस्मत खेल खिलाती है।
संघर्षों के पथ पर चल कर नया मुकाम बनाना है
शूल बिछे हैं जिन राहों में उन पर फूल खिलाना है,
सुख-दुख आते जाते रहते साहस नहीं गँवाना है
तूफ़ानों से लड़कर कश्ती साहिल तक पहुँचाना है।
परिवर्तन का नाम ज़िंदगी नित नया सबक सिखलाती
नश्वरता का भान कराके कर्म साधना बतलाती
आँख-मिचोली खेल खेलती मौत अँधेरी मँडराती
अंत समय सत राह दिखा कर साथ मनुज का ठुकराती।
स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” जीवन पथ” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।