जीवन नियम
स्वाभिमान जरा बढ़ जाए
अहम कहलाता है
स्वाभिमान कम हो तो
हर कोई धिक्कार लगाता है
अहम को त्याग दो
ये चला जायेगा
जरा तरक्की करी तुमने
ये वापिस लौट आयेगा
ये मैं की ही गंध है
जो मुझे मुझसे चुराती है
जरा जुड़ी जमीं से तो
बुलबुले सी मुझे उड़ाती है
समझ लो तुम
इमारत हो नहीं गगनचुंबी
चढ़े जो एक बार शिखर पर
उतारोगे क्या कभी नहीं
मेले का हिंडोला
जीवन चक्र सीखा रहा
आज गर चूमा आसमां
कल धरती पे गिरा रहा
नियम ऊंच नीच का बांध लो
तुम अपने दिल से
बदल जाओगे खुद बखुद
जुड़ जाओगे मिट्टी से
Anjali A
दिल्ली रोहिणी