जीवन दहा हो उसका
ये भी आवाज़ ऊँची करें तो क्या भला हो उसका
अगर तुम भी ऐसा करो तो जीवन दहा हो उसका।
जिसके ऊपर उसके अम्बरों की सारी चिताएं देखीं थी
जिसके भाग के तजुर्बों की कई कहानियां देखीं थी
वो खल गये,वो सिमट गये,वो बड़े,वो छुपाए गये
फिर भी ये जहां चाहे क्या लहज़ा हो उसका।
जैसे जलते हुए दीपक की आँच होती है जिसमें
उगते हुए सूरज की धीमी घाम होती हैं जिसमें
डूबाने की कोशिश करते हर शख्स नाकाम होते हैं कैसे?
मानो चुभता हो उन्हें ऐसा उजियारा हो उसका।
सोचों की यातनाओं का ढेर हो सामने,जिसे बटोरने की जरूरत है
चलकर हवाएं बिखेरती हैं सब कुछ, उन्हें थमने की जरूरत है
तों एक गठरी बँधती है शरीर के सभी कराह को निकालकर
जिन्हें दुआओं की तल्खियों में रखना कोई दावा हो उसका
अब तो जिंदगी हवाओं से हट,समंदर की ओर चलने लगी है
डूबकर खत्म होते हैं,ये गलतफहमी होने लगी है
जैसे डूबाकर मेरे शागीर्द ने वापस खींचा हो मुझे
ऐसे ही पाक़ीज़ा तन अब हो रहा हो उसका
शिवम राव मणि