जीवन तड़पे धरती तड़पे
जीवन तड़पे धरती तड़पे
हर घर सूना लागे रे
वन वन मे तो फिरू भटकती
हर वन सूना लागे रे
तपती धरती तपता सूरज
नदिया सूनी लागे रे
तड़प तड़प के पंछी मरते
जीव अधूरा लागे रे
नाही मगर है ना ही मछली
कमल अधूरा लागे रे
हिरना भालू बंदर मामा
वन वन सूना लागे रे
नगर बसे अब उजड़े वन मे
सब जग सूना लागे रे
तुलसी नीम नही आगन मे
हर घर सूना लागे रे
कृष्णा कहता पेड. लगालो
वन वन सूना लागे रे
जीवन तड़पे धरती तड़पे
हर घर सूना लागे रे
कृष्णकांत गुर्जर