जीवन चक्र
पटरी पर दौड़ने वाली
लंबी सी रेलगाड़ी,
आज
माचिस की डिबिया सी
सटी पड़ी थी
पटरी से परे,
तर-पर।
कहीं हाथ था,
कहीं था पांव,
कहीं था धड़
मरहूम पड़ा।
दूर खड़ी भीड़
चीत्कार कर रही थी,
दहल उठा था
हृदय सभी का,
देख मौत का दारूण तांडव।
अट्टहास कर रहा था
प्रचंड काल,
लील कर अनगिन जानें।
लीपापोती में जुटा था
दीर्घदर्शी प्रशासन।
किसी का भाई,
किसी का बेटा,
किसी की माता,
किसी की बहन,
बन गए थे काल-ग्रास।
सरपट दौड़ती गाड़ी ने
रोक दिया जीवन-चक्र,
सावधानी जरा हटी थी,
दुर्घटना यह तभी घटी थी।