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29 May 2023 · 1 min read

जीवन के खेल

जीवन का खेल समझ ना आया
कभी धूप तो कभी छाया
जो चाहा क्या मिला मुझे?
आज तक कुछ समझ ना पाया
ज्वार भाटा के समान
आते रहे उतार-चढ़ाव
मैं कहां पर ठहर पाया?
आज तक कुछ समझ ना पाया
पलटते गए कितने ही पन्ने हैं
कितने खाली रह गए
और कितने लिख पाया?
आज तक कुछ समझ ना पाया
उलझनों से भरी हुई
कितनी रिक्तियां रह गई
क्या मैं उनको भर पाया?
आज तक कुछ समझ ना पाया

– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
79 Views
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