*जीवन की शाम (चार दोहे)*
जीवन की शाम (चार दोहे)
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(1)
दो बूढ़े घर में बचे, बच्चे बसे विदेश
सुख के साधन हैं सभी, मन में लेकिन क्लेश
(2)
वृद्धाश्रम बढ़िया बना, वाह-वाह चहुॅं ओर
किसे पता रजनी घिरी, या फिर उजली भोर
(3)
मोबाइल पर रोज ही, पोते करते बात
मुख देखे बरसों हुए, यह ही हृदयाघात
(4)
उनका ही जीवन सुखी, उनका घर सुख-धाम
‘जय कृष्णा बाबा’ कहें, जहॉं पौत्र अविराम
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451