जीवन की परख
पहचानना सीख,
इधर उधर क्या देखता है
जो है सामने तेरे,
तू उसे क्यों ढूँढता है
वो है पास तेरे लेकिन
क्यों नहीं तू उसे देखता है
है ये धोखा मोह माया का
जो नहीं है वही ढूँढता है
ज़िंदगीभर तलाश में रहकर
बस ज़िंदगी ख़त्म करता है
फिर, जो है पास तेरे
वो भी कहाँ पास रहता है
रहता है बेहतर की तलाश में
क्या आकाश भी कभी मिलता है
बैठा है जिस पहाड़ पर
क्यों नहीं उसका मज़ा लेता है
मिलती है नसीब वालों को ज़िंदगी
वक्त हरपल तुमसे कहता है
फिर भी समझ नहीं पाता तू
हरपल परेशान रहता है
वक्त आता है तेरा भी
तू भी चला जाता है
अनजान सुख की चाह में
जो है वो भी खो जाता है।