जीवन की डगर
यूं ही घिर आता है
कभी-कभी अँधेरा काले बादलों का
हृदय में डर बढ़ाता है
सांसो में कम्पन लाता है
खिच जातीं हैं माथे पर चिन्ता की रेखायें
वेदना का एहसास आंखोँ में छलक आता है
मन निराशा में आकण्ठ डूब जाता है
आत्मविश्वास पीपल के पत्ते सा थरथराता है
विपरीत समय सच में बहुत कड़वे एहसास कराता है
धैर्य की जड़ें हिला जाता है
जीवन अनिश्चितता की पहेली बन जाता है
मार्ग कुआँ और खाई के बीच फस जाता है
प्राय: अपना अपना नहीं रहता है
रग रग में लहू दर्द बनकर बहता है।
…पर घोर अन्धकार में भी टिमटिमाता है
छोटे से बिन्दु के रूप में प्रकाश का एक बिम्ब
हृदय को थोड़ा सा सम्बल दे जाता है
ईश्वर की सत्ता में विश्वास कराता है
कर्म के सिद्धांत का पाठ याद दिलाता है
समय बलवान है मन बार-बार दोहराता है
जाने कहाँ से फिर साहस भर जाता है?
कठिनतम मार्ग पर भी चलने का हौसला आ जाता है
ये जीवन की डगर है…
इस पर ऐसे ही चला जाता है
कठिनाइयों से हारने वाला मनुज कहाँ कहलाता है।।