आम आदमी की जद्दो -जहद्द के मध्य,ब्यथा और ब्यवस्था की जंग
प्रथम भाग !
ब्यथा और ब्यवस्था के मध्य है एक जंग,
ब्यवस्था बनाने वाले देते हैं,इसको अनेकों रंग,
सीधे -सीधे कोई ब्यथा नहीँ होती है हल,
उसको पाने के लिए दिया जाता है पुरा झोल,
ऐसा कुछ अनुभवों के आधार पर जाना है मैने,
कैसे-कैसे पाया जाय इन्हे यह माना है मैने,
जब पानी का सयोंजन चाहिए था मुझे,
तो वह यों ही सहजता से नहीं हासील हुआ,
काटें हैं चक्कर उन सबके,जिनका भी इससे जुडाव था,
विभाग में तो सिर्फ आवेदन करना होता है,
बाकी क्या -क्या होना है,यह तो सयोंजन कोअधिकृत –
परसन ही कहता है,
वही निर्धारित करता है उसकी प्रक्रिया,
वही बतलाता है कितना खर्च होना है रुपया,
तब जाकर सयोंजन हो पाया,
उनका काम हुआ खतम,पर पानी फिर भी नही आया,
मैने उनको अपना ब्यथा बतलाई,
उन्होने अपनी बात मुझे समझाई,
आपके घर की लाइन में कमी है,
अपने पलम्बर को बुलाओ,जिससे लाइन बनी है,
अब तो पुन! पलम्बर की सेवा को भागा,
उसने भी जांचा परखा और बतलाया ,
तुमने सयोंजन कहाँ लिया है,
मैने स्थान बतलाया,वह देख कर बौखलाया, इतनी दूर यह काम क्यों किया है,
मैं बोला भाई,जहाँ उन्हें उचित लगा वहाँ दिया,
वह बोला अब तो बिन मोटर के पानी कैसे आयेगा,
मैने लाकर मोटर भी लगाई,पर पानी कम ही आया,
अब भी मैं पानी कि समस्या से जूझ रहा,हूँ,
हाँ,यह और बात है कि पानी सर्दी-या बर्षात में आता है
पर जैसे ही गर्मियों का आगाज होता है,यह रुलाता है,
यह है मेरी ब्यथा,और उनकी ब्यवस्था,
शायद,आम आदमी की भी होगी यही अवस्था।