जीवन की चिंता
है विकट ये प्रश्न हमारा
अपने आप से करती हूँ ,
जीवन के खाली जगहों को
बेवजह ही भरती रहती हूँ ।
जीवन किसका कितना होगा
अपना भी तो ज्ञात नहीं ,
कल की चिंता क्यों कर होती
जब अगला पल भी ज्ञात नहीं ।
पल पल से चलता है जीवन
पल भर की भी आश नहीं ,
एक घड़ी भी कैसे कह दूँ
क्षण भर की भी साँस नहीं ।
अगला पल सबको ठग देगा
उस पर भी विश्वास नहीं ,
कितना कौन पल जी लेगा
बतलाना परिहास नहीं ।
जितना जीवन मैं जी लूँगी
उतना अपना कह दूँगी
कोई पूछे फिर भी कितना
उसको शून्य मैं कह दूँगी।
गणना सबकी अपनी अपनी
सबकी अपनी कहानी है ,
पल में आए पल में जाए
पल भर इसकी निशानी है ।
मिले कहीं जो हल इसका तो
आप सभी मुझे बता देना ,
हर पल की गणना तुम करके
मानव की उम्र बता देना ।