जीवन का सुख
मैंने अपने जीवन की नाव को
धकेला था एक सुंदर सुखद टापू की खोज में।
मन आशा से भरा हुआ कि संभवतः
जीवन के सुख का आनंद उस पड़ाव पर हो।
पिछले जीवन के खुर्दरे
अनुभव को भूलकर जीने की आस में ।
जहां होगा हृदय को अपार शांति का अनुभव ।
आज तक वह खोज न पूरी हो सकी।
कितने ही टापू निकल गए
हर एक पर रह कर देख लिया।
और अगले टापू पर अनुभव हुआ
इससे तो अच्छा पिछला पड़ाव ही था।
यही सनातन सत्य है कि
संसार रूपी सागर में
जीवन की इस नौका का
हर अगला पड़ाव पिछले से
और अधिक कठोर बनकर आता है
तो बहुत सुख और आनंद
फिर कहाँ मिलेगा?
उसका तो एक ही स्थान है
वह मिलेगा हृदय के अंतः स्थल में
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’