जीवन का सम्बल
जीवन का सम्बल है बेटी,तनमन दीपित करती है
हृदय-तार मम झंकृत करके,अविरल खुशियाँ भरती है
पर घर बेटी जब जाएगी,तड़प-तड़प तड़पायेगी
पलको में निर्झरिणी बनकर,मुझको सदा रुलायेगी
मलय बयार हृदय की मेरी,घर आँगन महकाती है
विस्तृत घर का कोना-कोना,फुदक-फुदक चहकाती है
आँखों से जब ओझल होगी,दिल पर वज्र गिराएगी
पलकों में निर्झरिणी बनकर,मुझको सदा रुलायेगी
आँखों का तारा है बेटी, कैसे उसको छोडूंगा
पलकों पर जिसको रक्खा हूँ,कैसे मुँह को मोडूँगा
रैन-दिवस मन आकुल होगा,पल-पल रूह कँपायेगी
पलकों में निर्झरिणी बनकर,मुझको सदा रुलायेगी
रीति-नीति औ विधि विधान से,बेटी को जाना होगा
निष्ठुर समय चक्र के आगे,हिम्मत दिखलाना होगा
जिन हाँथो से पाला-पोसा,होकर विवश छुड़ाएगी
पलकों में निर्झरिणी बनकर,मुझको सदा रुलायेगी
डॉ. छोटेलाल सिंह मनमीत