जीवन का सफर
मेरी नई कविता आशा है आप सब को पसंद आएगी आप समीक्षा की अवश्य दीजिएगा
जीवन का सफर
जिंदगी की किताब के
खोले जब कुछ पन्ने
चल रही थी जिंदगी
ऐसे ही कुछ हौले हौले ——-
बिखरी थी कुछ यादें
रूठे हुए थे कुछ रिश्ते
मुड़कर देखा जब पीछे
साथ न था कोई मेरे
जिंदगी की किताब के खोले—
बेबस हो फिर मैंने —
खोली यादों की गठरी
पास खड़ा था बचपन
बेफिक्र सी थी तहजीब
था सब कुछ मेरा अपना
निश्छल और अललहड़ सी थी मुस्कान
सजीव थे खेल खिलौने
साथ थे सब संगी साथी
जिंदगी की किताब के खोले—
दिन में सपने दिखाता
फिर आया शर्मीला सा यौवन
जागे नित नई अभिलाषा
उड़ती थी नील गगन में
करते थे बाते आईना से
होगा मेरा भी कोई साथी
कजरारी सी ये आंखें
देखा करती थी सपने
जिंदगी की किताब के खोलें—
आज परिपक्व हुई जब मैं
तब जाना जीवन का अर्थ
यादें साथ रही बस मेरी
छूटे बारी – बारी सब हाथ
उम्र के इस पड़ाव पर
अब थक गया है मन
पथिक है हम सब इस पथ के
चलना है जीवन में एक बार
जिंदगी की किताब के
खोले जब कुछ पन्ने
दीपाली अमित कालरा
नई दिल्ली