जीवन का सत्य
हरेक ज़िदगी की अजब दासतां है।
खुश हैं मगर जाने क्यूं परेशां हैं।।
शानोशौकत का जज़्बा था खूब आज़माया ।
धन संपदा का भी अंबार पाया ।।
हर काम में अग्रणी होना चाहा ।
मेहनत से वो भी सब कर दिखाया ।।
पानी थी शोहरत, संगी साथी सभी से।
दुनिया की दौलत ने वो रंग जमाया ।।
अच्छे बुरे की पहचान होती।
मुश्किल समय पास जब न उन को पाया।।
कुंठित हुआ मन चहुं ओर भागे।
मन ही मन में सब जवाब मांगे।।
क्या सत्य है वो जो न दिख पाए।
उमर बीत जाए पर न थाह पाए।।
झूठी है संसार की सारी दौलत ।
सत्य ज़िदगी का स्वयं में ही पाएं ।।
सफर ज़िदगी का अजब है खज़ाना ।
चले राह पर और तजुर्बे कमाना ।।
न रहता समय एक सा हर किसी का
खोजो तो पाओ ये सत्य ज़िदगी का ।।
विनीता नरुला
स्वरचित व मौलिक