जीवन और महाभारत
जीवन और महाभारत
जन्म….शैशव…यौवन
शिक्षा…जीवन…यापन
विवाह…संस्कार…बच्चे
बच्चे…कैरियर…बच्चे..
यही चक्र तो सबका है
इसी चक्र पर चलना है
थोड़ा लिखा, थोड़ा घूमे
थोड़ा मिले, कुछ रूठे
कुछ गले लगे, कुछ बिछुड़े
कभी वेग, कभी आवेग….
कभी शांत, निशब्द, व्योम
क्या यही जीवन है…?
कुछ प्रसिद्धि, कुछ आसक्ति
सबका क्रम, उद्यम, उत्थान-पतन
इसी क्रम में हम उम्र गिनते हैं।
अधरों पर होती है कामना
कुछ अच्छा हो….और
क्या हो… कोई
नहीं जानता…
उसकी तो कोई अभिव्यक्ति
भी नहीं…वह तो मौन है/
जड़ है/ न पास है/ न दूर है
क्या यही जीवन है ?
जन्म और मृत्यु इन दो
चक्रों के बीच झूलता
कसमसाता, लहराता
इठलाता, बलखाता
लजाता, शर्माता, इतराता
असहाय सा/ निर्बल/ कुंठित
आंखों में तैरता अतीत…
बुलबुले की मानिंद यौवन
सूनी दीवारों और आसमान
को ताकती जरावस्था…
अशवत्थामा/ अर्जुन सरीखे बाण
और द्रोपदी के लाज से लज्जित
जीवन यही कहता है…..
क्या यही जीवन है…..?
क्या यही महाभारत है…?
आये क्यों……पता नहीं
क्या किया….पता नहीं
कब जायेंगे….पता नहीं
न निष्कर्ष हाथ में..
न निर्णय हाथ में…
फिर भी जीवन है
महाभारत है !!
सूर्यकांत