संघर्ष (एक युद्ध)
ये अधर नहीं बोलेंगे अब, नयनों के अश्रु सूख गये।
थी जिनकी प्रतीक्षा हमको,अब लगता है हमसे रुठ गये,,
माना जीवन में दुख है बड़ा, संघर्षो ने मुझको जकड़ा।।
होगा अब युद्ध अंतर्मन में, जीवन से हार ना मानूंगा।
या तो मिट जाऊंगा खुद मैं, इतिहास अमर कर आऊंगा।।
है अंधकार ही छाया अब, रोशनी की अब आशा ही नहीं।
था एकही जूगनू पास मेरे,अब उससे कोई अभिलाष नहीं,,
स्वयं ही अब इस अंधकार को, खुद से दूर भगाऊंगा।।
जीवन में अपने अब खुद मैं, एक नई रोशनी लाऊंगा।
या तो मिट जाऊंगा खुद मैं, इतिहास अमर कर आऊंगा।।
लोगों के ताने बहुत सुने, बर्दाश्त की सीमा पार हुई।
तिल तिल मरने से बेहतर है,महासमर में जाऊं मैं।।
खुद को मिटाकर भी खुद मैं, इतिहास का पन्ना लाऊंगा।
या तो मिट जाऊंगा खुद मैं, इतिहास अमर कर आऊंगा।।
~विवेक शाश्वत