जीवन : एक अद्वितीय यात्रा
जीवन : एक अद्वितीय यात्रा
____________
जन्म – मरण दोनों जीवन की मजबूरी है,
राह सरल या हो कठिन चलना उसका जरूरी है।
ढेर है सदमें, ढेरों ग़म अक्सर हो जाती आंखें नम,
देख ज़माने की हरक़त पी जाना पड़ता पत्थर बन।
दिख जाए लुढ़कती बूंदे तो व्यापार सगा भी कर जायेगा,
भींगी पलकों पर अपना बन सपने भी इठलायेगा ।
हर गली,हर कोने में उसके किस्से ही गूंजेंगे,
बिगत काल की गहराई अक्सर बातें दुहरायेगी।
मुँह पर तेरे, तेरा बन कर राज,
तेरे पीठ के पीछे ही अंदाज ज़माना खोलेगा ।
छल रहित व्यवहार तुम्हारा, तेरा शत्रु बन जायेगा,
आहत मन की पीड़ अगर जो तू अपना बतलायेगा।
सहना जीवन की ऊंचाई, व्यथा उसकी गहराई,
उस गहराई में छुप कर बैठी रहती सच्चाई।
बिन सच्चाई जीवन व्यर्थ, बेईमानी है,
उफान भरे समंदर में जैसे तन्हा लाचारी है।
इस अद्वितीय यात्रा में, मन की उत्सुकता और खुशी,
तभी मधुर संगीत है; जब तक
सच्चाई गहराई का हिस्सा है।
आज हमारी कल तुम्हारी,
दिन है सबका अपना-अपना।
हाथी अपने पाँव से भारी चींटी अपने पाँव।
मेल कहाँ कहीँ दोनों का?
लेकिन, मौक़ा उपहास नहीं चूकती !
रटी- रटाई वर्णो की लड़ीयों से खेल अनजाने भी मिल जाएंगे ज्ञानी पंडित, जब बारी तेरी होगी ।
मान रही यह दुनियाँ सारी,
नहीं मानती हो रश्मि, तो देखो!
कैसे छुप-छुप कर पत्तों में कैरी प्रहार किया करती?
शर्माती सकुचाती कुछ संगी पत्तों में मुँह छुपाती,
जब आ जाती बीच बाजार, कितनी लाचार नजर आती?
सहमे-सहमे से वो पत्ते जिनका मिटना ही है बाकी,वो भी उपहास नहीं चूकते!
जीवन, एक अद्वितीय यात्रा !
____________