जीवन इतना कठिन नहीं है
जीवन इतना कठिन नहीं था जितना हमने बना लिया है…
जब लक्ष्य नहीं कोई निश्चित राहों को क्यों बुना गया है…
पता नहीं है क्या है पढ़ना,
जो है पढ़ना क्यों है पढ़ना,
भाई चचेरा है लंदन में
जो पढ़ता था वही है पढ़ना..
माँ ने जेवर, पिता ने खेती
खुद ने सेहत गिरवी रख दी
कॉलेज तो मिल गई चहेती पुश्तैनी घर बेच दिया है…
जीवन इतना कठिन नहीं था जितना हमने बना लिया है…
अपना बेटा ऐसा नहीं है,
दुनिया के बच्चों सा नहीं है,
हमने दुलहन देख राखी है उसका तेवर
आज की बहुओं जैसा नहीं है..
छोड़ो माँ बेकार की बातें
सादगी और संस्कार की बातें
मैंने लंदन में मार्टिना को अब हमसफ़र बना लिया है…
जीवन इतना कठिन नहीं था जितना हमने बना लिया है…
जाने कितने पॉण्ड कमाए पता नहीं है,
माँ बापू कब स्वर्ग सिधारे पता नहीं है,
मार्टिना अब जॉन के साथ मे ज्यादा खुश है
पी ली इतनी खुद का घर अब पता नहीं है..
मिट्टी सरसों नदिया पनघट याद आरहे
बोलती माँ और चुप से बापू याद आरहे
अपने कारण अरसे पहले जिनका क्रियाकर्म हुआ है…
जीवन इतना कठिन नहीं था जितना हमने बना लिया है…
कितना धन और कैसा धन हो चिंतन नहीं है…
धन है तो फिर किसमें व्यय हो चिंतन नहीं है…
मृत्यु सुनिश्चित और साथ में कुछ नहीं जाता हमें पता है
फिर क्या होगा इस संग्रह का चिंतन नहीं है…
रिश्ते नाते काया साधन सुखद घरौंदा,
बेमानी सब रुतबा गाड़ी और नारी संग नर्म विछोना,
जानबूझ कर समझ समझ कर खुद ने जीवन नर्क किया है…
जीवन इतना कठिन नहीं था जितना हमने बना लिया है…
भारतेन्द्र शर्मा