जीवन इतना आसान कहाँ—
जीवन इतना आसान कहाँ—
जीवन इतना आसान कहाँ
जीने लायक सामान कहाँ
विचरते हैं शैतान जमीं पर
मिलता अब इन्सान कहाँ
मुखौटे लगे खोटे चेहरों पर
सहज सरल मुस्कान कहाँ
भ्रष्टता हर सूं पसरी बैठी
खो गया दीन-ईमान कहाँ
गुजरे रात अब करवटों में
सुकून भरा उपधान कहाँ
पटी है धरा अभिशापों से
मिलता कोई वरदान कहाँ
उजड़ रहे नीड़ परिन्दों के
चहकता कोई उद्यान कहाँ
दरिंदगी का आलम ये है
सुरक्षित घर-दालान कहाँ
कलियाँ मसली जाएँ जहाँ
बचें फूलों में अरमान कहाँ
सुनाई न देतीं नन्ही चीखें
है गर कहीं भगवान, कहाँ
व्यवधान हजारों जीवन में
हरने को मगर सन्धान कहाँ
टूट रही है ‘सीमा’ पल-पल
रहे जर्जर तन में जान कहाँ
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)