जीवनसंगिनी
जब पत्नी ने आईने समक्ष
निज प्रतिबिंब निहारते हुए
नयन मटकाते और इठलाते
जुल्फें झटकाते,लहराते हुए
अकस्मात ही मुझ से पूछा
प्रियवर!प्रीतम जरा सुनिए
ईमानदारी से मुझे ये बताएं
बिल्कुल भी नहीं हिचकचाएं
कतई भी ना शर्माएं,लज्जाएं
मेरी सुंदरता से मुझे अवगत
कराते हुए तनिक बताएं कि
आपकी हूर,जिन्दगी का नूर
घनश्याम मे छिपा कोहीनूर
यथार्थवत कैसी लग रही है
यह सुन मै थोड़ा घबराया
हिचकचाया और बौखलाया
अन्तर्मन शक्ति को जुटाया
मन में यह सोचते हुए कि
शाम का खाना नहीं खाया
हिम्मत जुटाते हुए बताया
ओ सुन!मेरी जोहरजबी
भाल आभा,जीवनसंगिनी
मेरी जीनत ,मेरा सम्मान
मेरा मान आन बान शान
अब मैं तुझे क्या बताऊँ
सच से अवगत करवाऊँ
मेरे पास शब्दो अभाव हैं
सच बताना मेरा स्वभाव है
सुंदरता चाहे कोसों दूर है
कैसी भी हो,जैसी भी हो
निराली हो ,अनोखी हो
मेरे जीवन की ज्योति हो
सपनों का सुंदर संसार हो
तुम मेरी जीवन आधार हो
तुझ से जुड़ी मेरी खुशियाँ
तुम मेरी फूलों की बगियाँ
प्रेम ,निष्ठा की प्रतीक हो
मेरे सुख दुख में शरीक हो
तुम दुखहरणी दुखभंजनी
पूनम चाँद शालीन रजनी
तुम जीवन मधुरिम गीत हो
सादगी,अनुराग की रीत हो
तुम अंतर्मुखी अतिसुंदर हो
जीवन का पवित्र मंदिर हो
यह सब सुन वह हुई भावुक
आलिंगनबद्ध आतुर व्याकुल
आँखों में बह रही अश्रुधारा
कहती मैं तेरी हूँ जीवनधारा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत