जीवन,वन में
जीवन जियो,जैसे हो वन में
हरि सुमरन कर लो रे मन में।
जैसे पानी रहता घन में,
वैसे ही प्रभु का वास है तन में।
प्रेम बढ़ाओ तुम जन जन में
व्यस्त रहो न ज्यादा धन में।
देह मिली ज्यों बालापन में
वैसी ही हो, चौथेपन में।
भले रहो आलीशान भवन में
जीवन जियो जैसे हो वन में।
रामनारायण कौरव