जीने की कला
शांति संतोष से जीने की कला, जब जीवन में आ जाती है।
पाता है आनंद मनुज, सुख शांति आ जाती है।
हर परिस्थिति में, समान दृष्टि आ जाती है।
सुख दुख दो दोनों स्तिथि में, जीवन जीने की कला जाती है।
कर्तव्यनिष्ठ क्षमा दान शील, बुद्धिमान और दयालु कृतज्ञ और शांत रहते हैं।
पल पल का आनंद लूट, समाज को देते रहते हैं।
बेचैन और अशांत लोग, आनंद नहीं ले पाते हैं।
कलह विवाद विषाद, सुख दुख में उलझे रहते हैं।
अनैतिक आलसी उत्साह विहीन, अनुशासन हीन अशांत रहते हैं।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी