जीना सीखो
अमन -चैनमय वीणा सीखो|
नेह- शांतिरस पीना सीखो|
ज्ञान-भाव का अनुपम संगम,
पाकर,जीवन-जीना सीखो|
उज्जवलता जीवन-प्रकाश है|
फिर क्यों मनुआ अति उदास है|
कर्म करो, पग एक बढाओ,
बिना चाल नाहीं विकास है|
जीवन कुंठाओं के घर-सा,
नहीं बने,वह चीह्ना सीखो|
ज्ञान-भाव का अनुपम संगम|
पाकर, जीवन-जीना सीखो|
जग-झंझावातों की काली,
निशा आ रही है मतवाली|
मत घबड़ाना सुहृद, समय की,
चाल बड़ी बेढंग -निराली|
इस युग की करतूतें जानो|
कुछ तो झीना- झीना सीखो|
ज्ञान -भाव का अनुपम संगम|
पाकर, जीवन-जीना सीखो|
सुजन, जागकर कदम बढ़ाओ|
आँगन में उल्लास सजाओ|
जीवन के तुम भाग्यविधाता,
जागो! उठो, न अब शरमाओ|
आगे बढ़ो, हौसला रखकर ,
समय- सूर्य को छीना सीखो|
ज्ञान-भाव का अनुपम संगम|
पाकर, जीवन-जीना सीखो|
अमन-चैनमय वीणा सीखो|
नेह-शांतिरस पीना सीखो|
ज्ञान-भाव का अनुपम संगम|
पाकर,जीवन जीना सीखो|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता