जीना यदि चाहते हो…
होते थोड़े मंदबुद्धि जानवर इसलिए,
मार-मार कर उन्हें खा रहा है आदमी।
कहीं श्रम करवाता, खींचता है खाल कहीं,
दूध, अंडे हेतु भी सता रहा है आदमी।
जीना यदि चाहते हो बुद्धिमान बन जाओ,
आदतों से बाज नहीं आ रहा है आदमी।
ज्ञानहीन जन को भी जानवर के समान,
पल-पल जाल में फँसा रहा है आदमी।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 01/08/2024