जिसे अपना माना __ गजल / गीतिका
ढूंढ ढूंढ कर थक गया दोस्त कोई मिला नहीं।
जमावड़ा दुश्मनों का बिना बुलाए ही लग गया ।।
काम पर जाना था मुझे अपना पेट भरने के लिए।
रात को देर से लौटा पर सुबह जल्दी ही जग गया।।
तड़फ रहा था दर्द के मारे मुसीबत में फसकर यारो।
जिसे अपना माना स्थिति देख वही दूर भग गया।।
पढ़ लिख लेता तो हिसाब किताब लगा लेता मैं भी।
शिक्षा से दूर सीधा-साधा मुझे हर कोई ठग गया।।
राजेश व्यास अनुनय