————जिससे जितने संयोग मिलेंगे————
————जिससे जितने संयोग मिलेंगे————
नये नये शहरों में तुझको नये नये से बोझ मिलेंगे
नये नये अफ़साने होंगे नये नये से लोग मिलेंगे।
कुछ गैर मिलेंगे अपनों जैसे, कुछ अपने हाथ छुड़ाएंगे
कैसे इस गुमनाम भीड़ में प्रीतम तुझको खोज मिलेंगे।
हमदर्द जिसे तूँ कहता है उसका भी जख़्म पुराना है
साथी साथ वहीँ तक है जिससे जितने संयोग मिलेंगे।
एक ठिकाना ढूँढ़ परिंदे रात रागिनी से पहले
महफ़िल में उजड़े दीवाने तो रोज़ उड़ाते मोज़ मिलेंगे।
भला बुरा कहकर उसको खुद को इतना दर्द ना दे
मटमैले तालाबों में ही खिलते हुए सरोज मिलेंगे।
तुम परदेसी वो अनजाने इश्क़ की कैसे बात करें
आते जाते राह में तुझको कौन सा वो हर रोज़ मिलेंगे।