जिसके हर खेल निराले हैं
1) इक नूर से दुनिया में हर सिम्त उजाले हैं
ये शम्स-ओ-क़मर तारे सब उसके हवाले हैं
2)वो अक़्ल से बाहर है और इश्क़ के अन्दर है
जानें उसे क्या जिसके हर खेल निराले हैं
3)मैं उसकी तमन्ना में बहकी थी बहोत लेकिन
उसने ही क़दम मेरे हर बार सॅंभालें हैं
4)इतनी सी हक़ीक़त है इतना सा तार्रूफ़ है
हम अहले ज़मीं सारे जन्नत के निकाले हैं
5)जादू भरी ऑंखों का क्या राज़ कहूॅं तुमसे
मदहोश नज़र में ये दो जाम के प्याले हैं
🌹मोनिका मंतशा🌹