जिसकी लाठी उसकी भैंस।
डर-डर के भी जीना क्या
एक दिन सभी को जाना है ।
अन्याय कभी न करना मगर
अन्याय कभी न सहना है।
जब तक जीना है जग में
स्वाभिमान से जीना है।
निर्बल से कुछ होता नहीं
बलवान ही सत्ता पाते हैं।
बल तन का चाहे होना हो
मन का बल ही होता है ।
अपना तो अंदाज यही है
जैसा देश वैसा भेष ।
बड़े बुजुर्ग कह गए हैं भैया
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
-विष्णु ‘पाँचोटिया