जिसकी फितरत वक़्त ने, बदल दी थी कभी, वो हौसला अब क़िस्मत, से टकराने लगा है।
ये वक़्त जाने क्यों, खुद को दोहराने लगा है,
भूली-बिसरी सदाओं को, नए आवाज में गाने लगा है।
जिन वादियों में, खुद को खोया था कभी,
जाने क्यों वही मंज़र, खुद चल कर मेरे पास आने लगा है।
फूलों से नज़र तो, कब की हट चुकी थी मेरी,
आज ये दिल काँटों को देख, भी मुस्कुराने लगा है।
वो गलियां जो नाता तोड़ चलीं थी,
उनका मेरी राहों में, अब आना-जाना लगा है।
जिस सफर में चल कर कभी, थके थे कदम मेरे,
उन्हें नए पंखों से मिलकर, उड़ने को आसमां का ठिकाना मिला है।
खारे साग़र की गहराई, में डूबी थीं जो संवेदनाएं,
उन्हें चाहत के छीटों से, होश का ठिकाना मिला है।
जिसकी फितरत वक़्त ने, बदल दी थी कभी,
वो हौसला अब क़िस्मत, से टकराने लगा है।