जिम्मेदारी की चादर
मैं हूँ अध्यापक
बच्चों को
इतिहास-भूगोल
राजनीति-शास्त्र
पढ़ाता हूँ
अनेक बार अध्यापन में
देश को
कृषि प्रधान बताता हूँ
उन्हीं छात्रों को
छुट्टी के बाद
दुकानों पर
बाल श्रमिक पाता हूँ
हालात पाठ्य-पुस्तकों को
गलत साबित करते हैं
कितने नोनिहाल
भीख मांग कर
पेट भरते हैं
अक्सर ये बच्चे
वक्त से पहले ही
बड़े हो जाते हैं
जिम्मेदारी की चादर ओढ़
बचपन की चारपाई से
खड़े हो जाते हैं
-विनोद सिल्ला©