Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 May 2023 · 1 min read

जिम्मेदारी और पिता (मार्मिक कविता)

जिम्मेदारीयों के बोझ तले दबा हुआ पिता
बच्चों की ख़ातिर फिर भी खुश रहता है पिता.

बीबी से भी कभी शिकायत नहीं कर पाता?
बीबी बच्चों के लिए हर पल जीता है पिता.

घर परिवार की जिम्मेदारी मे भागमभाग
हर मेहनतकशी करता है जो पिता.

घर का चूल्हा जले दो वक्त की रोटी मिले
खून पसीने एक कर देता है पिता.

क्या उसकी अब अपनी कोई खुशियां नहीं?
शायद बच्चों की खुशियों में ही खुश हो लेता है पिता.

घर परिवार खुशहाल रहे यही जिम्मेदारी निभाने
तपीश धूप या बारीश हो मेहनत मजूरी करता है पिता

कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

Language: Hindi
2 Likes · 512 Views
Books from Dr. Kishan Karigar
View all

You may also like these posts

एक थी नदी
एक थी नदी
सोनू हंस
मन ...
मन ...
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मुलाकात
मुलाकात
sheema anmol
Thoughts are not
Thoughts are not
DrLakshman Jha Parimal
बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।
बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
With every step, you learn, you soar,
With every step, you learn, you soar,
Sakshi Singh
When you remember me, it means that you have carried somethi
When you remember me, it means that you have carried somethi
पूर्वार्थ
*बदलाव की लहर*
*बदलाव की लहर*
sudhir kumar
कविता
कविता
Kavi Ramesh trivedi
Attraction
Attraction
Vedha Singh
औरत
औरत
MEENU SHARMA
निगाहें मिलाके सितम ढाने वाले ।
निगाहें मिलाके सितम ढाने वाले ।
Phool gufran
इश्क चाँद पर जाया करता है
इश्क चाँद पर जाया करता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Rachana
Rachana
Mukesh Kumar Rishi Verma
वक्त की दहलीज पर
वक्त की दहलीज पर
Harminder Kaur
A Girl Child
A Girl Child
Deep Shikha
सपना
सपना
Lalni Bhardwaj
????????
????????
शेखर सिंह
जो धन आपने कमाया है उसे आप भोग पाओ या ना भोग पाओ; लेकिन उस ध
जो धन आपने कमाया है उसे आप भोग पाओ या ना भोग पाओ; लेकिन उस ध
ललकार भारद्वाज
*दादू के पत्र*
*दादू के पत्र*
Ravi Prakash
3966.💐 *पूर्णिका* 💐
3966.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
*प्रणय*
हिंदी दोहा- अर्चना
हिंदी दोहा- अर्चना
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हमने देखा है हिमालय को टूटते
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
वक़्त आज तेजी से बदल रहा है...
वक़्त आज तेजी से बदल रहा है...
Ajit Kumar "Karn"
धन की खातिर तन बिका, साथ बिका ईमान ।
धन की खातिर तन बिका, साथ बिका ईमान ।
sushil sarna
अफसोस है मैं आजाद भारत बोल रहा हूॅ॑
अफसोस है मैं आजाद भारत बोल रहा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
"तब कोई बात है"
Dr. Kishan tandon kranti
भागम भाग
भागम भाग
Surinder blackpen
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
Loading...