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14 May 2023 · 1 min read

जिम्मेदारी और पिता (मार्मिक कविता)

जिम्मेदारीयों के बोझ तले दबा हुआ पिता
बच्चों की ख़ातिर फिर भी खुश रहता है पिता.

बीबी से भी कभी शिकायत नहीं कर पाता?
बीबी बच्चों के लिए हर पल जीता है पिता.

घर परिवार की जिम्मेदारी मे भागमभाग
हर मेहनतकशी करता है जो पिता.

घर का चूल्हा जले दो वक्त की रोटी मिले
खून पसीने एक कर देता है पिता.

क्या उसकी अब अपनी कोई खुशियां नहीं?
शायद बच्चों की खुशियों में ही खुश हो लेता है पिता.

घर परिवार खुशहाल रहे यही जिम्मेदारी निभाने
तपीश धूप या बारीश हो मेहनत मजूरी करता है पिता

कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

Language: Hindi
2 Likes · 481 Views
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