जिन लोगों ने दर्द (नवगीत)
नवगीत_15
जिन लोगों ने
दर्द छुआ है ,
उनमें तुम हो, उनमें मैं हूँ ।
हरे घाव को तृप्त कर गई
ये सन्ध्या की धूप बुढ़ापी
नमी दे गई नम आँखों को
जीवन की ये आपाधापी
एकाकीपन
दो गज ठहरा
भीड़ लिए,निर्जन में मैं हूँ ।
थपकी देकर सुला रही है
निशि को वर्षा आताताई
टपटप सुनकर भोर आ गयी
रात उठी सोकर अलसाई
मुझमें मैं हूँ
या प्रकृति है
ख़ैर इसी उलझन में मैं हूँ ।
चिंताओं की बदली मन में
घिर आयी काफ़ी नज़दीके
प्रेम न माने खुद के आगे
नपने सारे झूठ सही के
फिर तुमको
क्या आश्वाशन दूँ,
दर्दो के आँगन में मैं हूँ ।
रकमिश सुल्तानपुरी