जिन परिन्दों से डर गए कुछ लोग
जिन परिन्दों से डर गए कुछ लोग
उनके पर भी कतर गए कुछ लोग
कह दिया साहिलों पे मत जाना
फ़िर भी लेकिन उधर गए कुछ लोग
यूँ ही ईमान बेचकर अपना
हो के ज़िंदा भी मर गए कुछ लोग
एक क़ातिल है दरमियाँ उनके
डर के मारे किधर गए कुछ लोग
दूर मंज़िल कठिन सफ़र भी है
रास्ते में ठहर गए कुछ लोग
सच निभाकर जिये सदा जो यहाँ
उनमें से भी गुज़र गए कुछ लोग
इनमें ‘आनन्द’ क्यूँ नहीं शामिल
आइने से निखर गए कुछ लोग
– डॉ आनन्द किशोर