जिन्दगी
एक मुलाकात ही काफी है जीने के लिए
एक ही आह काफी है गम पीने के लिए
हर सुबह खिलतें हैं फूल उमंग के साथ
एक शाम काफी है पुष्प मुरझाने के लिए
बहुत समय लगता है लगी आग बुझाने को
एक ही सींक काफी है आग लगाने के लिए
साल बीत जाती है कोई विवाद मिटाने को
एक ही पल काफी है विवाद बढाने के लिए
विश्वास बहुत होता है प्रेम अनुराग बढाने को
एक ही घात काफी है अनुराग मिटाने के लिए
रात पूरी बीत जाती है तब नव प्रभात होती है
एक सूर्यास्त काफी हैं बस रात होने के लिए
खूब उष्म पड़ती है जलचक्र बादल बनाने को
हवा का झोंका काफी है मेघ बरसाने के लिए
प्रेम मरता ही नहीं अमर हो जाता है जमीं पर
निस्वार्थ सोच काफी है प्रेम अमर होने के लिए
जिन्दगी कट जाती हैं बहुत दुख तकलीफों को
प्रेम फुहार काफी है प्रेम अग्न बढाने के लिए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत