जिन्दगी फलसफा फलसफा जिन्दगी
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जिन्दगी फलसफा फलसफा जिन्दगी।
कायम रहता प्रतिकूलताओं में भी यह
जाने है किसकी-किसकी वफा जिन्दगी।
मृत्यु के श्लोक पढ़ते चले ताउमर
और आतुर रहे हर्ष को जिन्दगी।
जन्म से मृत्यु तक का खुला सा सफर
पर, रहस्यों से कितनी! भरी जिन्दगी।
अस्मिता जैसे शब्दों को रखने खड़ा
युद्ध सी होती आती चुनौती जिन्दगी।
सुरक्षित रहे हर विषमताओं से यह
करता इसके लिए हर हत्या जिन्दगी।
कहते सौगात है उस अनामी का यह
कहते रहते तथा खुद खुदा जिन्दगी।
जी तो लेता है अगणित पलों को यहाँ
पर,समझता नहीं क्या-क्या! जिन्दगी।
ध्वंस किसका? किसका है निर्माण? यह
सृष्टि,स्रष्टा के गुर दे पढ़ा जिन्दगी।
मूलत: जड़ है कि जीवंत यह
उस कण का पता दे बता जिन्दगी।
दिव्य तो है कृपा ईश्वरीय सा यह तथा
प्राणी,प्राणी से ही मांगता रहा जिन्दगी।
समझाये कैसे यह हमें या तुम्हें
खुद समझता नहीं क्या है जिन्दगी।
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