जिन्दगी नाम नहीं मर के जिए जाने का
जिन्दगी नाम नहीं मर के जिए जाने का
रहनुमा काम यही करते हैं समझाने का
राह जैसी भी मिले फ़िक्र नहीं करते हम
हमको आता है हुनर गिर के संभल जाने का
हौसला रखना सदा दिल में कि आगे मंज़िल
है अकेला भी अगर काम न घबराने का
हुस्ने-यक़्ता है ग़ज़ब और ग़ज़ब रानाई
है बहाना भी तेरे पास तो इतराने का
कल भी दुनिया को नहीं फ़िक्र थी दीवाने की
कोई किस्सा न सुने आज भी दीवाने का
तुमने लिक्खी है अगर कोई कहानी मेरी
नाम अच्छा सा ही रखना मेरे अफ़साने का
कोई बेघर है यहाँ कोई ग़रीबी में जिये
फिर भी सरकार करे काम ये बहलाने का
झूट की कर के कमाई जो यहाँ रहते हैं
इक हुनर उनमें है इन्सान को भरमाने का
साथ लाना है उसे आज इसी महफ़िल में
बिन तेरे आज तो ‘आनन्द’ नहीं आने का
– डॉ आनन्द किशोर