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21 May 2023 · 1 min read

*जिन्दगी का सत्य

हर इंसान इक मुसाफिर है यहाँ
नहीं पता किसी को गन्तव्य है कहाँ
दिशाहीन ही तो है हम सब यहाँ
क्योंकि हमें स्वयं नहीं पता कि आखिरी पडाव हैं कहाँ ?

अनवरत चलते हैं हम रहते
कभी थकते, कभी रुकते, कभी मद्धम, कभी गतिमय,
कभी लालसा के प्रवेग में बहते
अनभिज्ञ हम स्थानक से अपने,

न जाने कब अकस्मात ही
अवरोहण का निर्देश होगा
क्षण भर में फिर उस स्थान पर हमें यूं ही उतरना होगा

यही सत्य है इस जीवन का
नही पता अगले ही पल का
भज ले नाम हरि का ऐ बंदे
यही तो तेरी धरोहर होगा

डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)

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