जिद कहो या आदत क्या फर्क,”रत्न”को
क्यूँ ज़िक्र हैसियत और क़ाबलियत का ,
बराबर की तलब काफी है,दोनों में इस रिश्ते को निभाने //
दिलो का मेल ,और दीदार-ए-तमन्ना,
कुछ नहीं और दिलो की दोस्ती,के लिए पैमाने //
जाने क्या पनप रहा है,दिलों की ज़मी पर ,
फिर शायद तैयार है,हम दोनों खुदको सताने //
हर शाम साथ हो चंद घडियों के लिए,
मुकर्रर दिन बता दो, फासले और ये गिले मिटाने //
अजीब कशमकश है,अनजान हम खुद भी,
नाम क्या दे ,इन एहसासों को ज़माने को बताने //
जिद कहो या आदत क्या फर्क,”रत्न”को
दोनों फ़र्ज़ निभा रहे बराबर ,हमें पास लाने //