जिज्ञासा मेरे अन्तस्तल की
जिज्ञासा मेरे अंतस्तल की
जिज्ञासा मेरी बनी रहती हैं क्यो नही पता
चाहती हूँ कब ,क्यूँ, कैसे सब होता हैं
जिज्ञासा रहती हैं जानने की उन्हें करीब से
पहचानने की कि कैसे सृष्टि चलती है ?
कौन हैं जो सारी बागडोर को संभाले हैं?
कैसे यह सब व्यवस्थित हैं?
मैं हर पल सोचती हूँ कोई तो है पालनहार
जब देखती हूँ तो सब में ही अपनापन नजर आता हैं
पर हैं क्या सच में ही सब अपने कहीं तो हैं व्यवस्थित
नहीं चाह कर भी लौट आती हूँ और निरूत्तर सी
और बढ़ जाती जिज्ञासा और भी गहराई तक उतारने की
उन्हें पाने की जो हैं हम सब का पालनहार
क्या है, कैसे है, कहाँ है, कौन है बस यही प्रश्न खड़े
जन्म क्यो,कैसे,कब,कहाँ न जाने कितने ही प्रश्न
जिज्ञासा बन पटल पर उभरते है मिटते हैं
जन्म से मृत्यु तक का सफर क्यो हैं, कब तक हैं
क्या ये सब निश्चित है यही जिज्ञासा लिए मैं
पृथ्वी से अम्बर तक कौन हैं जो नियमानुसार चला रहा है
प्रबल इच्छा जानने की जिज्ञासा उसे पाने की इच्छा
बस जिज्ञासा जो बनी रही ,और सुलझी भी नही
जिज्ञासा मेरी जिज्ञासा को लेकर मेरे प्रश्न वही के वही
रुके से चले से बस जिज्ञासा रूप में
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद