जिक्रे उल्फत
जिक्रे उल्फत का कुछ ऐसा नजारा था,
मेरा सारा वक़्त उनका और उनका सारा वक़्त हमारा था,
कभी लड़खड़ाते ही न थे कदम मेरे उनकी मौजूदगी में,
ऐसा मेरे हमदम मेरे हमसफ़र का सहारा था,
जाने कौन सी ख्वाहिशात हुई उनकी मुझे छोड़ के जाने की,
करते थे उनसे इतनी मोहब्बत हम उनका फैसला ए नफरत भी हमे गवारा था,