जिंदगी
ये जिंदगी कुछ दिन बचपना के
कुछ दिन जवानी में फिर बुढ़ापे में
यूंही कट जाती हैं राहें ज़िन्दगी के
छोटी किन्तु एक कशिश मिठास – सी ।
अनमोल भी, राहें में भी मिलती वो अल्फाज़
तन – मन में तार लगा दे प्रणय बन्धन के
एक – एक, दो भी साथ फिर हो सृजनधार
इसे भी तन्हा कर दे, रहमन भी दे उजाल
स्वप्निल में जगा, देखा, फिर वो बीती बीती ख़्याल
प्रस्तर थी उठान – सी , कौन हो इससे पार सदा
सहर्ष संघर्ष स्वीकार थी देते फिर कौन पनाह
बात बीती, जग चला फिर किसका दें उन्मुख गान
जिल्द – जिल्द में छायी एक – एक हो फिर जगहार
लौटती तस्वीर भी देखी पुष्प किरणों में बिखरती
कर श्रृंगार प्रतिबिंब दिखाती अंदर से रहस्य पूछो सार
दीवानी गयी मरघट में, दे कौन निमंत्रण हो एकसार
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय बिहार