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17 May 2021 · 1 min read

जिंदगी

जिंदगी चार दिन का मेला है!
भीड़ में हर कोई अकेला है!

कोई् समझा नहीं जिसे अब तक,
जिंदगी ऐसा् एक खेला है!

जितना् सुलझाओ उतना उलझेगी,
जिंदगी क्या है एक झमेला है!

देखने में ये है जलेबी सी,
स्वाद इसका बहुत कसैला है!

ताश पत्तों सी् जिंदगी यारो,
है ये दुक्की कभी ये दहला है!

साथ में गर कदम मिला के चलो,
जैसे साथी नया नवेला है!

प्यार मिल जाए गर तुझे प्रेमी,
जिंदगी ख़ाब इक रुपहला है!

…….✍ सत्य कुमार प्रेमी

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