इक तेरे सिवा
तुमसे हटकर सोचूं भी क्या, इक तेरे सिवा जगत रखा क्या
पंचतत्व में तुम ही समाये , तुमसे सुन्दर जगत में और क्या ………
ये तारे, नज़ारे सब तुम्हारे इशारे,सागर औ पर्वत काली घटा रे
आने से पहले तुमको पुकारे, चौंसठ कलाएं, ये दिनकर प्रभा रे
तेरी इच्छा से अस्तित्व इनका. इक तेरे सिवा जगत रखा क्या ……….
तेरा ही दिया तन-मन हो तेरा, सबकुछ ही तेरा नहीं कुछ भी मेरा
सकल ज्ञान अध्यात्म फेरा, तिमिर का मिटाया तुमने ही घेरा
तुमने बताया सत्य शाश्वत क्या , इक तेरे सिवा जगत रखा क्या ……….
धर्म-अधर्म या अकर्म-कर्म-दुष्कर्म, तुम ही कारक मिटे मन के भरम
मिथ्या- सत्य और पाप पुन्य भ्रम, व्यवहार वाणी हो ग्रन्थों का दर्शन
तुमसे ही पाया जन्म अर्थ है क्या, इक तेरे सिवा जगत रखा क्या ……….
रहे खोजते गौतम न पाए, सूर, कबीर, तुलसी, तोहे गाये
धुर की वाणी नानक लिखवाये, प्रेम धुन मीरा मगन हो जाए
कोई भी पूर्ण तोहे जान सका न, इक तेरे सिवा जगत रखा क्या ……….
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