जिंदगी
ज़िंदा रहना ज़रूरी है
ये कैसी मजबूरी है ,
मरने की इच्छा है
तो कानून की उपेक्षा है ,
अजब ज़िंदगी है
गजब ज़िंदगी है ,
क्या – क्या रंग दिखाती है
सबको खूब छकाती है ,
जब चाहे हँसाती है
जब चाहे रूलाती है ,
इसके खेल निराले हैं
इसको समझने वाले मतवाले हैं ,
इसका अजीब सा सबब है
इसको जीना अपने में गजब है ,
ये मदारी हम बंदर हैं
हम पोरस ये सिकंदर हैं ,
अपने होने का एहसास
ये हर पल कराती है
धीरे – धीरे मुझे और भी
ज्यादा समझदार बनाती जाती है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/11/12 )