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17 Apr 2020 · 1 min read

जिंदगी

मुसाफिर हूँ जिंदगी का और ठिकाना भी यहीं है
फ़लसफ़ा जिंदगी में अपना और बेगाना भी यहीं है

दिल और दिमाग का कैसा ये संगम है जिंदगी में
रोना भी है और साथ में मुस्कुराना भी यहीं है

ख्वाहिशों के समंदर में कितना खोना और पाना है
जितना ऊपर जाना है उतना नीचे आना भी यहीं है

जिंदगी के आशियानें में कब तक कोई सदा रहता
कभी बेबस जीना भी है और मरजाना भी यहीं हैं

हर आँसू में छिपा गम नहीं ना हर हँसी खुशी होती
जैसी हो जिंदगी जीना भी है और हँसाना भी यहीं है

Mamta Rani

2 Likes · 3 Comments · 475 Views
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