जिंदगी
ऐ जिंदगी!
जीने का हुनर मुझे भी सिखा दे।
सिमटूं न बिखरूं, टूट जाऊं न कहीं
हौसला रख सकूं,ऐसी बेमिसाल तरक़ीब कोई बता दे।
शौक़ नहीं मशहूर होने का मुझे,
बस,झूठे रिश्तों को निभाने का अदब सिखा दे।
मत पूछ ,तेरी तलाश में भटके कहाँ-कहाँ,
चलने का न सही,कम-से-कम संभलने का हुनर सिखा दे।
मंजिलों की चाहत बाक़ी नहीं अब,
बस तू अपनी पनाह में रहना सिखा दे