जिंदगी
राम से है बड़ी ,राम की बंदगी।
फिर फटेहाल क्यों ,आम ये जिंदगी।1।
बाढ़ में बह गया, है जुनुं प्यार का
मुफलिसी में कटी ,यार ये जिन्दगी।2।
रोटियां जो मिली, सिसकियाँ भी मिली।
रोज मिलती नहीं, प्यार की जिंन्दगी।3।
रूठता जब रहा , बचपना प्यार को।
क्रूरता ही मिली, जब मिली जिन्दगी।4।
जब लगी ठोकरें, आँख खुल ही गयी।
बोझ ढोने लगी , बोझ हो जिंदगी।5।
आसमां झुक गया, जब क्षितिज के
लिये।
थम गया वो समय , मिल गयी जिंदगी।6।
“प्रेम” कहता रहा ,नफरती राह में।
कंटकों से भरी ,प्यार है जिंदगी।7।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम