जिंदगी है खेल नहीं
खेल सी हो चली है
कैसी जिंदगी है ये
अपनो को ही नोच रहे सब
कैसी दरिंदगी है ये
शर्मिन्दगी होती है महसूस
क्या यही इनका काम है
करता है एक गलत
पर सारी कौम बदनाम है
आदत डाल लें धोखे की
आज तूने दिया किसी को
कल वो किसी और को देगा
यूँ ही मिलेगा एक दिन सभी को
कितनी भी कर लो कोशिश
झूठ की ना नींव हिलेगी
ईंट के बदले पत्थर नही
अब गोली मिलेगी
ये खेल ज़िन्दगी का
अब गंदा हो गया है
सही गलत दिखता नही इन्हें
इंसान लालच में अंधा हो गया है
अंजनी ‘कुमार’ मिश्रा
भोपाल(म.प्र.)